pratyabhigyanam
सप्तम: पाठ:
प्रत्यभिज्ञानम्
प्रत्यभिज्ञानम्
भट:- जयतु महाराज:।
राजा – अपूर्व इव ते हर्षो
ब्रूहि केनासि विस्मित: ?
भट: -अश्रद्धेयं प्रियं
प्राप्तं सौभद्रो ग्रहणं गत:।
राजा – कथमिदानीं गृहीत: ?
भट: - रथमासाद्य निश्शङ्कं बाहुभ्याम् अवतारित:।
भट: - रथमासाद्य निश्शङ्कं बाहुभ्याम् अवतारित:।
(प्रकाशम्) इत: इत: कुमार:।
अभिमन्यु: -भो: को नु खल्वेष:? येनभुजैकनियन्त्रितो
बलाधिकेनापि न पीडित: अस्मि।
बृहन्नला –इत इत: कुमार:
अभिमन्यु: -अये! अयमपर: क: विभात्युमावेषमिवाश्रितो
हर:।
बृहन्नला- आर्य, अभिभाषणकौतूहलं मे महत्। वाचालयत्वेनमार्य:।
भीमसेन: -(अपवार्य) बाढ़म् (प्रकाशम्) अभिमन्यो!
अभिमन्यु: -अभिमन्युर्नाम ?
भीमसेन: -रुष्यत्येष मया त्वमेवैनमभिभाषय।
बृहन्नला - अभिमन्यो !
अभिमन्यु: -कथं कथम्। अभिमन्युर्नामाहम्।भो:! किमत्र विराटनगरे क्षत्रियवंशोद्भूता: नीचै: अपि नामभि: अभिभाष्यन्ते अथवा अहं शत्रुवशं गत: अतएव तिरस्क्रियते।
भीमसेन: -(अपवार्य) बाढ़म् (प्रकाशम्) अभिमन्यो!
अभिमन्यु: -अभिमन्युर्नाम ?
भीमसेन: -रुष्यत्येष मया त्वमेवैनमभिभाषय।
बृहन्नला - अभिमन्यो !
अभिमन्यु: -कथं कथम्। अभिमन्युर्नामाहम्।भो:! किमत्र विराटनगरे क्षत्रियवंशोद्भूता: नीचै: अपि नामभि: अभिभाष्यन्ते अथवा अहं शत्रुवशं गत: अतएव तिरस्क्रियते।
बृहन्नला-अभिमन्यो! सुखमास्ते
ते जननी ?
अभिमन्यु:-कथं कथम्। जननी नाम? किं भवान् मे पिता अथवा पितृव्य:? कथम् मां पितृवदाक्रम्य स्त्रीगतां कथां पृच्छसे?
बृहन्नला- अभिमन्यो! अपि कुशली देवकीपुत्र: केशव:?
अभिमन्यु:-कथं कथम्। तत्रभवन्तमपि
नाम्ना। अथ किम् अथ किम्?
(उभौ परस्परमवलोकयत:)
अभिमन्यु:-कथमिदानीं सावग्यमिव
मां हस्यते?
बृहन्नला- न खलु किन्चित्।
पार्थं पितरमुद्दिश्य मातुलम् च
जनार्दनम्।
तरुण्स्य कृतास्त्रस्य युक्तो
युद्धपराजय:॥
{अन्वयः- पार्थं पितरं मातुलं च जनार्दनं| उद्दिश्यं तरुणस्य कृतास्त्रस्य
युद्धे पराजयः युक्तः?}
अभिमन्यु:- अलं
स्वच्छन्दप्रलापेन! अस्माकम् कुले आत्मस्तवं कर्तुमनुचितम्। रणभूमौ हतेषु शरान्
पश्य,
मदृते अन्यत् नाम न् भविष्यति।
बृहन्नला - एवं वाक्यशौण्डीर्यम। किमर्थं तेन पदातिना गृहीतः?
अभिमन्यु:- अशस्त्रं मामभिगतः ।
पितरम् अर्जुनम् स्मरन् अहम् कथम् हन्याम्। अशस्त्रेषु मादृशाः न प्रहरन्ति। अतः
अशस्त्रोऽयं मां वञ्चयित्वा गृहीतवान्।
राजा : त्वर्यतां त्वर्यताम्
अभिमन्यु|
बृहन्नला : इत: इत: कुमारः| एष महाराजः
उपसर्पतु कुमार:|
अभिमन्यु: - आ:| कस्य महाराज:?
राजा – एह्येहि पुत्र! कथं न
माम अभिवादयसि? (आत्मगतम्) अहो! उत्सिक्तः खल्वयं क्षत्रियकुमार:| अहमस्य
दर्पप्रशमनं करोमि| (प्रकाशम्) अथ केनायं गृहीत: ?
भीमसेन: - महाराज! मया|
अभिमन्यु: -
अशस्त्रेणेत्यभिधीयताम्।
भीमसेन: - शान्तं पापम्| धनस्तु
दुर्बलैः एव गृह्यते। मम तु भुजौ एव प्रहरणम्।
अभिमन्यु: - मा तावद् भो:! किं
भवान् मध्यम तात: य: तस्य सदृशं वच: वदति|
राजा – पुत्र! कोऽयं मध्यमो
नाम?
अभिमन्यु:
- योक्त्रयित्वा जरासन्धं कण्ठश्लिष्टेन बाहुना।
असह्यं
कर्म् तत् कृत्वा नीत: कृष्णोऽतदर्हताम्॥
राजा –
न ते क्षेपेण रूष्यामि, रुष्यता भवता रमे।
किमुक्त्वा
नापराद्धोऽहं, कथम् तिष्ठति यात्विति॥
{अन्वय:- कण्ठश्लिष्टेन बाहुना जरासन्धं योक्त्रयित्वा तत् असह्यं कर्म्
कृत्वा कृष्णः अतदर्हतां नीत:| ते क्षेपेण न रूष्यामि, रुष्यता भवता रमे| किम्
उक्त्वा अहं न अपराद्धः? कथम् तिष्ठति, यातु इति| }
अभिमन्यु:
यद्यहमनुग्राह्य: -
पादयो:
समुदाचार: क्रियतां निग्रहोचित:।
बाहुभ्याह्रतं
भीम: बाहुभ्यामेव नेष्यति ॥
(ततः
प्रविशत्युत्तर:)
उत्तर:
- तात! अभिवादये!
राजा-
आयुष्मान भव पुत्र| पूजिताः कृतकर्माणो योधपुरुषा:|
उत्तर:
- पुज्यतमस्य क्रियतां पूजा|
राजा-
पुत्र! कस्मै?
उत्तरः
इहात्रभवते धनंजयाय|
राजा-
कथं धनञ्जयायेति?
उत्तरः
– अथ किम्
श्मशानाद्धनुरादाय
तूणीराक्षयसायके।
नृपाभीष्मादयो
भग्ना वयम् च परिरक्षिता:॥
राजा –
ऐवमेतत्|
उत्तरः
– व्यपनयतु भवाञ्छङ्काम अयमेव अस्ति धनुर्धर: धनंजय:।
बृहन्नला-
यद्यहं अर्जुन: तर्हि अयम् भीमसेन्: अयं च राजा युधिष्ठिर:।
अभिमन्यु:
इहात्रभवन्तो मे पितर:। तेन खलु...
न
रुष्यन्ति मया क्षिप्ता हसन्तश्च क्षिपन्ति माम्।
दिष्टया
गोग्रहणं स्वन्त: पितरो येन दर्शिता:॥
( इति
क्रमेण सर्वान् प्रणमति, सर्वे च तम्
आलिङ्गन्ति)
विराट की गायों का अपहरण
होने पर कौरवों के साथ विराट के पुत्र उत्तर और अर्जुन आदि पांडवों का युद्ध होता
है| इस युद्ध में भीम के द्वारा अभिमन्यु को पकड़ लिया जाता है|
उसे विराट के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है| उक्त घटना क्रम इसी
प्रसंग में है|
भट- महाराज की जय हो|
राजा-
आपकी प्रसन्नता अपूर्व है| कहिए किस बात पर आश्चर्य चकित हैं|
भट्-
अकल्पनीय प्रिय बात हो गई है| अभिमन्यु को पकड़ लिया गया है|
राजा-
वह किस प्रकार पकड़ा गया है?
भट-
रथ के पास जाकर बिना किसी भय-शंका
के दोनों भुजाओं के सहारे उतार लिया गया|
(प्रकट
रूप से) इधर,
इधर राजकुमार!
अभिमन्यु-
अरे यह कौन है, जिसने केवल बाहु
से पकड़कर, बलवान होने पर भी मुझे पीड़ित नहीं किया?
बृहनल्ला
– इधर, इधर राजकुमार |
अभिमन्यु- अरे! यह दूसरा कौन है? ऐसा लग रहा है जैसे महादेव ने उमा का वेश धारण कर
लिया हो |
बृहनल्ला
- आर्य इस से बात करने की बहुत जिज्ञासा है| आर्य इसे बोलने के लिए प्रेरित करें |
भीमसेन- (दूर
हटकर) ठीक है |
(प्रत्यक्ष में) हे अभिमन्यु !
अभिमन्यु- अभिमन्यु ? नाम ?
भीमसेन- यह मुझ पर क्रोधित है|
आप ही इससे बात करें|
बृहनल्ला-
हे अभिमन्यु!
अभिमन्यु- कैसे-कैसे? तो मैं (मात्र) अभिमन्यु
हूँ? अरे!
क्या यहां विराटनगर में क्षत्रिय वंश में उत्पन्न व्यक्ति, तुच्छ लोगों के द्वारा नाम से बुलाए जाते हैं,
अथवा मैं शत्रु के वश में
हूँ, इसलिये अपमानित किया जा रहा हूँ|
बृहनल्ला- क्या तुम्हारी माता कुशल
पूर्वक है ?
अभिमन्यु-
कैसे-कैसे? माता के संबन्धं में?
क्या आप मेरे पिता अथवा चाचा हैं? आप
क्यों मुझ पर पिता के समान अधिकार दिखाकर माता के सम्बन्ध में प्रश्न् कर रहे हैं?
बृहनल्ला
- हे अभिमन्यु!
क्या देवकी पुत्र कृष्ण कुशल से हैं?
अभिमन्यु- कैसे-कैसे? क्या आप उनको भी नाम से
ही (संबोधित करोगे?) और क्या, और क्या!
(दोनों एक-दूसरे को देखते
हैं)
अभिमन्यु-
यह मुझ पर अपमान पूर्वक क्यों हंस रहा है?
बृहनल्ला
– नहीं, ऐसा नहीं है?
पिता अर्जुन और मामा
कृष्ण को उद्देश्य करके उस युवा तथा अस्त्रयुक्त की युद्ध
में पराजय उचित है क्या?
अभिमन्यु- स्वच्छन्द प्रलाप (व्यर्थ की बकवास) बन्द करो। हमारे
कुल में आत्म प्रशंसा करना अनुचित है| युद्ध भूमि में मृतकों
पर लगे हुए बाणों को देखो! मेरे अतिरिक्त दूसरा नाम
नहीं होगा|
बृहनल्ला
– वाणी की ऐसी वीरता! तब एक पैदल ने तुम्हें
कैसे पकड़ लिया था ?
अभिमन्यु- वह शस्त्रहीन ही मेरे पास आये|
पिता
अर्जुन को याद करते
हुये मैं (उसे) कैसे मारता ? मेरे
जैसे, शस्त्र रहित व्यक्तियों पर प्रहार नहीं करते हैं,
अतः शस्त्र रहित इस व्यक्ति ने धोखा देकर मुझे पकड़ लिया है!
राजा-
तीव्रता से अभिमन्यु को लाओ|
बृहनल्ला- राजकुमार इधर, यह महाराज हैं|
कुमार पास आओ |
अभिमन्यु- किसका
महाराज?
राजा-
आओ, आओ पुत्र! मेरा अभिवादन क्यों नहीं
करते हो? (मन ही मन में) अरे! यह
क्षत्रिय कुमार घमंडी है| मैं इसके घमंड को शांत करता हूँ| (प्रत्यक्ष में) इसे किसने पकड़ा?
भीमसेन- महाराज मैंने |
अभिमन्यु बिना अस्त्र के (पकड़ लिया)
ऐसा कहना चाहिए|
भीमसेन- पाप
शांत हो| दुर्बल व्यक्ति ही धनुष ग्रहण किया करते हैं|
मेरा शस्त्र तो
भुजाएं ही हैं| अभिमन्यु -
ऐसा नहीं है| क्या आप मझले चाचा हैं,
जो उनके समान वचन बोल रहे हैं|
राजन-
पुत्र, यह मझले कौन हैं ?
अभिमन्यु – सुनिए,
जिसमें अपनी भुजाओं से जरासंध का कंठावरोध कर के, कृष्ण के लिए जो असाध्य
कार्य था, उसको साध्य बना दिया था|
राजा-
तुम्हारे आक्षेपों द्वारा कुपित नहीं होता हूं,
क्रोधित होते देखकर प्रसन्न होता हूँ|
क्यों खड़े हो,
चले जाओ, ऐसा कहुँ
तो क्या मैं तुम्हारा अपराध नहीं करूंगा|
अभिमन्यु -
यदि आप मुझ पर कृपा करना चाहते
हैं तो मेरे पैरों को बान्ध कर उचित दंड दीजिए| बाहों से अपहरण करके लाए हुए मुझको,
भीम भुजाओं से ही ले जायेंगे|
(उत्तर प्रवेश करता है|)
उत्तर - भगवन अभिवादन करता हूँ|
राजा -
आयुष्मान बनो पुत्र| योद्धाओं का सत्कार(पूजन) किया जा चुका है|
उत्तर-
सबसे अधिक सम्माननीय व्यक्ति का सत्कार किया जाए|
राजा -
पुत्र किसका?
उत्तर -
श्रीमान धनंजय का|
राजा -
धनंजय का किस लिए?
उत्तर - और क्या ! श्रीमान ने शमशान से
धनुष को तथा अक्षय तीरों वाले तरकश को लेकर भीष्म आदि
राजाओं को पराजित किया है और हमारी रक्षा की है|
राजा -
ऐसा है?
उत्तर -
आप शंका को दूर करें| यह धनुर्धर धनंजय यहीं
हैं|
बृहनल्ला- यदि मैं अर्जुन हूं तो यह भीम हैं और यह राजा युधिष्ठिर हैं|
अभिमन्यु -ये मेरे
पिता लोग हैं इसीलिये-
मेरे निंदापूर्ण वचनों के द्वारा क्रोधित नहीं होते हैं और हंसते हुए मुझे चिढ़ाते
हैं| सौभाग्य से गायों के अपहरण का अंत सुंदर रहा जिसने मुझे पिता आदि के दर्शन करा दिये|
(ऐसा
कहकर क्रम से सबको प्रणाम करता है और सब उसका आलिङ्गन करते हैं|)
Do watch : https://youtu.be/30ieEw-4MSc
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