चक्रवर्ती राजा दिलीप
चक्रवर्ती राजा दिलीप को एक बार उनके कुलगुरु महर्षि वसिष्ठ ने आदेश दिया कि कुछ काल हमारे आश्रम में रहो और मेरी कामधेनु नन्दिनी की सेवा करो।महाराज ने गुरु की आज्ञा स्वीकार कर ली। महारानी सुदक्षिणा प्रात: काल उस गौ माता की भली-भाँति पूजा करती थी। आरती उतारकर नन्दिनी को पति के संरक्षण-में वन में चरने के लिये विदा करती। सम्राट दिनभर छाया की भाँति उसका अनुगमन करते, और बराबर उसका ध्यान रखते|
लेकिन एक
दिन वन में महाराज दिलीप की दृष्टि क्षणभर जङ्गल की प्राकृतिक सुंदरता में अटक गयी और तभी उन्हें नन्दिनी की चीत्कार सुनायी दी।
वह एक भयानक सिंह के पंजों में फँसी छटपटा रही
थी। उन्होंने आक्रामक सिंह को मारने के लिये अपने तरकश से तीर निकालना चाहा, किंतु उनका हाथ जडवत् निश्चेष्ट होकर वहीं अटक गया, वे
चित्रलिखे से खड़े रह गये और भीतर ही भीतर छटपटाने लगे..
तभी मनुष्य की वाणी में सिंह बोल उठा: राजन्!
तुम्हारे शस्त्र संधान का श्रम उसी तरह व्यर्थ है जैसे वृक्षों को उखाड़ देनेवाला
प्रभंजन पर्वत से टकराकर व्यर्थ हो जाता है। मैं भगवान् शिव के गण निकुम्भ का
मित्र कुम्भोदर हूं ।
भगवान् शिव ने मुझे हाथी आदि से इस वन के देवदारुओ
की रक्षा का
भार सौंपा है। इस समय जो भी जीव सर्वप्रथम मेरे दृष्टि पथ में आता है वह मेरा
भक्ष्य बन जाता है। यह
गाय मेरे भोजन की वेला मे यह मेरे सम्मुख आयी है, अत:
मैं इसे खाकर अपनी भूख मिटाऊँगा।
तुम लज्जा और ग्लानि छोड़कर वापस लौट जाओ। किंतु राजा
दिलीप भय और पीड़ा
से छटपटाती, नेत्रों से लगातार आँसू बहाती नन्दिनी को देखकर और
उस संध्याकाल मे अपनी माँ की उत्सुकता
से इन्तजार
करने वाले
उसके छोटे से बछड़े
का स्मरण कर करुणा-विगलित हो उठे!
नन्दिनी का मातृत्व उन्हें अपने जीवन से कहीं अधिक मूल्यवान् जान पड़ा और उन्होंने
सिंह से प्रार्थना की कि वह उनके शरीर को खाकर अपनी भूख मिटा हो और बालवत्सा
नन्दिनी को छोड़ दे।
सिंह ने राजा के इस अदभुत प्रस्ताव का उपहास
करते हुए कहा: राजन्! तुम चक्रवर्ती सम्राट हो। गुरु को नन्दिनी के बदले करोडों
दुधार गौएँ देकर प्रसन्न कर सकते हो। अभी तुम युवा हो, इस तुच्छ प्राणीके लिये अपने स्वस्थ-सुन्दर शरीर और यौवन की अवहेलना कर
जान की बाजी लगाने वाले स्रम्राट! लगता है, तुम अपना विवेक
खो बैठे हो। यदि प्राणियों पर दया करने का तुम्हारा व्रत ही है तो भी आज यदि इस
गाय के बदले मे मैं तुम्हें खा लूँगा तो तुम्हारे मर जानेपर केवल इसकी ही
विपत्तियों से रक्षा हो सकेगी और यदि तुम जीवित रहे तो पिता की भाँति सम्पूर्ण प्रजा की निरन्तर
विपत्तियों से रक्षा करते रहोगे ।
इसलिये तुम अपने शरीर की रक्षा करो।
स्वर्गप्राप्ति के लिये तप त्याग करके शरीर की कष्ट देना तुम जैसे अमित
ऐश्वर्यशालियों के लिये निरर्थक है। स्वर्ग? अरे वह तो
इसी पृथ्वीपर है। जिसे सांसारिक वैभव-विलास के समग्र साधन उपलब्ध हैं, वह समझो कि स्वर्ग में ही रह रहा है। स्वर्गका काल्पनिक आकर्षण तो मात्र
विपन्नो के लिए ही है, सम्पन्नो के लिए नहीं। इस तरह से सिंह
ने राजा को भ्रमित करने का प्रयत्न किया।
भगवान् शंकर के अनुचर सिंह की बात सुनकर
अत्यंत दयालु महाराज दिलीप ने उसके द्वारा आक्रान्त नंदिनी को देखा जो अश्रुपूरित
कातर नेत्रों से उनकी ओर देखती हुई प्राण रक्षा की याचना कर रही थी।
राजा ने क्षत्रियत्व के महत्त्व को प्रतिपादित
करते हुए उत्तर दिया: नहीं सिंह! नहीं, मैं गौ माता
को तुम्हारा भक्ष्य बनाकर नहीं लौट सकता। मैं अपने क्षत्रियत्व को क्यों कलंकित
करूं? क्षत्रिय संसार में इसलिये प्रसिद्ध हैं कि वे विपत्ति
से औरों की रक्षा करते हैं। राज्य का भोग भी उनका लक्ष्य नहीं। उनका लक्ष्य तो है
लोकरक्षा से
कीर्ति अर्जित करना। निन्दा से मलिन प्राणों और राज्य को तो वे तुच्छ वस्तुओ की
तरह त्याग देते हैं, इसलिये तुम मेरे यश: शरीर पर
दयालु होओ।
मेरे भौतिक शरीर को खाकर उसकी रक्षा करो, क्योंकि यह शरीर तो नश्वर है, मरणधर्मा है। इसलिये
इसपर हम जैसे विचारशील पुरुषों की ममता नहीं होती। यह मांस का शरीर न भी रहे परंतु
गौरक्षा से मेरा यशः सुरक्षित रहेगा। संसार यही कहेगा की गौ माता की रक्षा के लिए
एक सूर्यवंश के राजा ने प्राण की आहुति दे दी। एक चक्रवर्ती सम्राट के प्राणों से
भी अधिक मूल्यवान एक गाय है।
सिंह ने कहा: अगर आप अपना शरीर मेरा आहार
बनाना ही चाहते है तो ठीक है। सिंह के स्वीकृति दे देने पर राजर्षि दिलीप ने शास्त्रो को फेंक
दिया और उसके आगे अपना शरीर मांसपिंड की तरह खाने के लिये डाल दिया और वे सिर झुका कर आक्रमण की प्रतीक्षा करने
लगे,।
तभी नन्दिनी
ने कहा: हे पुत्र! उठो! यह मधुर दिव्य वाणी सुनकर राजा को महान् आश्चर्य हुआ और जब वो उठ बैठे तो नन्दिनी गौ तो दिखायी दी, किंतु सिंह
दिखलायी नहीं दिया।
आश्चर्यचकित दिलीप से नन्दिनी ने कहा: राजन! तुम्हारी परीक्षा लेनेके
लिये मैंने ही सिंह की सृष्टि की थी।
महर्षि वसिष्ठ के प्रभावसे यमराज भी मुझपर
प्रहार नहीं कर सकता तो अन्य सिंहादिकी क्या शक्ति है। मैं तुम्हारी गुरुभक्ति से
और मेरे प्रति प्रदर्शित दयाभाव से अत्यन्त प्रसन्न हूँ। वर माँगो! तुम मुझे दूध
देने वाली मामूली गाय मत समझो, अपितु सम्पूर्ण कामनाएं
पूरी करनेवाली कामधेनु जानो।
राजा ने दोनों हाथ जोड़कर वंश चलाने वाले
अनन्तकीर्ति पुत्र की याचना की|
नन्दिनीने तथास्तु कहा। उन्होंने कहा राजन् मै आपकी गौ भक्ति से अत्याधिक प्रसन्न
हूँ,
मेरे स्तनों से दूध निकल रहा है उसे पत्ते के दोने मे दुहकर पी
लेनेकी आज्ञा गौ माता ने दी और कहा तुम्हे अत्यंत प्रतापी पुत्र की प्राप्ति होगी।
राजाने निवेदन किया: माँ! बछड़े के पीने तथा
होमादि अनुष्ठान के बाद बचे हुए ही तुम्हारे दूध को मैं पी सकता हूँ। दूध पर पहला
अधिकार बछड़े का है और द्वितीय अधिकार गुरूजी का है।
राजा के धैर्य ने नंदिनी के हृदय को जीत लिया। वह
प्रसन्नमना कामधेनु राजा के आगे-आगे आश्रम को लौट आयी। राजा ने बछड़े के पीने तथा
अग्निहोत्र से बचे दूध का महर्षि की आज्ञा पाकर पान किया, फलत: वे रघु जैसे महान् यशस्वी पुत्र से पुत्रवान् हुए और इसी वंश में
गौ-भक्ति के प्रताप से स्वयं भगवान् श्रीराम ने अवतार ग्रहण किया।
महाराज दिलीप की गौ-भक्ति तथा गौ-सेवा सभी के
लिये एक महानतम आदर्श बन गयी। इसीलिये आज भी गौ-भक्तो के परिगणना मे महाराज दिलीप
का नाम बड़े ही श्रद्धाभाव एवं आदर से सर्वप्रथम लिया जाता है। इस चरित्र से यह बात
सिद्ध हो गयी की सप्तद्वीपवती पृथ्वी के चक्रवर्ती सम्राट से अधिक श्रेष्ठ एक गौ
माता है ।
पेड़ हैं तो जीवन है|
पेड़ हैं तो जीवन है|
पात्र परिचय
रोली- रिपोर्टर
मन्नत- दूसरा रिपोर्टर
आशुतोष-कैमरामैन
आम का पेड़
जामुन का पेड़
नीम का पेड़
बादाम का पेड़
अनार का पेड़
अमरूद का पेड़
दर्शक
(टीवी चैनल रिपोर्टर रोली,
मन्नत एवं आशुतोष भीड़ को संबोधित कर माइक पर बता रहे हैं। थोड़ी दूरी
पर पेड़ों की सभा शुरू होने वाली है।)
रोली- दर्शको! मैं रोली पांडे आप सभी को पेड़ों की अचानक बुलायी गयी
इस important meeting का आंखों देखा हाल बताऊंगी। मेरे साथ कैमरामैन हैं आशुतोष । रिपोर्टर है मन्न्त।
मन्नत- (रोली से) देखो यहां पेड़ों का आना जाना शुरू हो गया है।
दर्शकों! मैं आपको बता दूं आज इस सभा को बुलाया है पेड़ों के राजा आम ने।
रोली- ये देखिए |आम के पेड़ पधार रहे हैं। अहा. हां.उन्हें देखकर मेरे मुंह में पानी आ रहा है।
मन्नत- Viewers!
मैं आपको बताना चाहूंगी, आम को फलों का राजा कहते हैं।हम कच्चे आम की चटनी और अचार बनाते हैं। पके मीठे रसीले आम तो आप सभी चटखारे लेकर खाते हैं।
रोली- लो
भइ नीम भी आ गये। स्वाद में कड़वा जरूर है, लेकिन गुणों की खान है यह पेड़।
मन्नत- इधर
देखिये ! जामुन, अनार और बादाम भी एक साथ आ रहे हैं।
रोली- सारे
पेड नेता आ चुके हैं। सब अपनी अपनी जगह बैठ भी गये हैं। लेकिन जाने क्या बात है?
meeting तो शुरू हो ही नहीं रही है। (मन्नत से) क्या
तुम्हें मालूम है,
किसका इंतजार हो रहा है?
मन्नत- हां रोली! अमरूद के पेड़ की प्रतीक्षा
की जा रही है। वे जैसे ही आएंगे,
सभा शुरू हो जाएगी।
रोली- तो दर्शकों इंतजार की घड़ियां खत्म हुई और
आप
“अभी तक” पर लाइव देख रहे हैं, पेड़ों की ये इंपॉर्टेंट मीटिंग | जी हां, एक्सक्लूसिवली सिर्फ और सिर्फ “अभी तक”
चैनल
पर हम दिखा रहे हैं, आपको कि पेड़ों की इस मीटिंग में आज क्या
कार्यवाही होने वाली है?
कहीं मत जाइएगा| बने रहिए हमारे साथ और देखिए कि पेड़ आज कैसे अपने मुद्दे हमारे सामने रखने जा
रहे हैं ।और अभी-अभी हम सबके बीच अमरुद जी भी आ गए हैं |
(दर्शकों से) अरे यह क्या! ये तो काफी कमजोर नजर
आ रहे हैं। लगता है इनकी तबीयत खराब है, तभी ये धीरे-धीरे चल रहे हैं।
मन्नत- आम जी द्वारा सभा का अभिवादन किया जा रहा है। आइए सुने कि वह क्या कह
रहे हैं ।
आम- मित्रो!
मैं जानता हूं आप सभी उत्सुक हैं। I know, I know, you all want to know why this meeting has
been called. अभी आप सभी जान जाएंगे की मीटिंग क्यों बुलानी पड़ी? जानना चाहते हैं ना, आप सभी इसका कारण|
('जी हां' सभी पेड़ एक स्वर
में)।
अनार-(आम के पेड़ से) भैया!
जल्दी से कारण बताओ और सभा समाप्त करो। मैं ज्यादा देर रुक नहीं पाऊंगा। मेरी
तबीयत ठीक नहीं है।
बादाम- (बीच में
टोकते हुए) भाई! इन दिनों मैं भी बड़ा week फ़ील कर रहा हूं।(बाकी पेड़ भी हाथ पर हाथ मारते हुये- अरे! हम भी पिछले कुछ दिनों से
बडा वीक और परेशान महसूस कर रहे हैं| )
आम- कृपया शांत रहिए, शांत रहिए। मैं आपकी इन्हीं problems को लेकर चिंतित हूं| इसीलिए आज ये सभा बुलाई है।
अमरूद -भैया! नेकी और पूछ-पूछ! सभा शुरू कीजिए।
आम- देखिए फ्रेंड्स| मैं आपकी प्रॉब्लम समझ रहा हूँ। अभी पिछले कुछ सालों तक हम सभी लहलहा रहे थे, एकदम हरे भरे थे और जीवन में बहुत जोश था| हम सब फलों से लदे रहते थे|
लेकिन अब यह मनुष्य हमसे फायदा तो उठा रहे हैं- BUT दे डू नॉट केयर अबाउट अस। उन्हें हमारी बिल्कुल परवाह नहीं है। वे आए दिन
अपने स्वार्थ के लिए हमारा शोषण कर रहे हैं।
बादाम- हां
मैं इस बात से बिल्कुल सहमत हूं |
दे
आर सिंपली टेकिंग
एडवांटेज ऑफ़ अस
लेकिन वह आने वाले कल के बारे में नहीं सोच रहे हैं| वह हमारे बारे में नहीं सोच रहे| और इसीलिये हम कमजोर हो रहे हैं।
जामुन- ये इन्सान कभी हमारे हरे-भरे तने को काट देते हैं, तो कभी फल तोड़ते समय हमें घायल कर देते हैं।
अनार- भैया मेरी भी तो सुनो! आजकल तो मुझे भरपूर पानी भी नहीं मिल पा रहा
है।
नीम- हम रोगों से लड़ने के
लिए medicine भी देते हैं। लेकिन यह बुद्धू इंसान हमें भी नष्ट कर रहे
हैं| हमारे भी पेड़ धीरे धीरे कम होते जा रहे हैं|
अनार- मैं आप को सबसे जरूरी बात बताता हूं| हम तो उन्हें ऑक्सीजन भी देते हैं जिससे वह
सांस लेते हैं और जो कार्बन डाइऑक्साइड वो छोड़ते हैं और जो कि एनवायरनमेंट के लिए खराब है, वह भी तो हम सोख लेते हैं|( सिर पर हाथ मारते हुए) फिर भी ये इन्सान!
जामुन- अरे अनार| अगर हम पेड़ों के फायदे गिनाना शुरू करें ना तो यह मीटिंग कभी खत्म ही नहीं होगी!
नीम- (जामुन
के पेड़ का समर्थन करते हुए) सही कहा आपने जामुनजी।
अमरूद- इतने
लाभकारी हैं हम, फिर भी ये नासमझ मनुष्य हमें चोट पहुंचा रहे हैं।
हमें
गायब करने पर तुले हैं|
अनार- वो हम पेड़ों की पत्तियों फूलों डालों से फायदा उठा रहे हैं, हमारे फल खा रहे हैं और कई बार तो हमारी जड़ें
भी उनके काम आती हैं|
इसमें हमें कोई दिक्कत
नहीं है, लेकिन वह कम से कम हमारा ध्यान तो रखे ! यह तो सोचें कि अगर पेड़ हैं तो इंसान हैं, पेड़ है तो चिड़िया हैं, संसार की सुन्दरता है| और क्या कहूं पेड़ है तो धरती पर जीवन है|
सभी पेड़ एक साथ- 'लेकिन हम करें तो क्या करें?
आम- मित्रो! हम चाहे तो बहुत कुछ कर सकते हैं।
नीम- वो कैसे?
आम- यदि हम ठान लें तो संपूर्ण
मानव जाति को दिन में तारे दिखा सकते हैं।
जामुन- लेकिन भैया, हमें तो कुछ
सूझ नहीं रहा है, आप ही राह दिखाइए।
आम- फ्रेंड्स
आज इंसान हमारे प्रति बिल्कुल बेपरवाह हो गए हैं और हमें नुकसान पहुंचा रहे हैं |जैसे ये इंसान हमारे प्रति बेपरवाह हो गए हैं, वैसे यह हमें भी इनके प्रति उदासीन होना पड़ेगा| उन्हें जो चीजें हम से मिलती हैं, जब वह चीजें नहीं मिलेंगी तो देखना, इनकी अकल बिल्कुल ठिकाने आ जाएगी|
सारे पेड़ :- जी भैया सही कहा आपने |
सभी पेड़ रोली से- हम
लोगों ने तय कर लिया है कि भले ही हमें अपनी जान भी दे देनी पड़े पर अब हम इंसानों
को ऑक्सीजन फल फूल लकड़ी मेडिसिन अनाज साग सब्जी कुछ भी नहीं देंगे |अरे जब हम अपनी जड़ों से पानी खींचेगे ही नहीं तो फिर धीरे-धीरे हम तो खत्म होंगे, लेकिन इन्सानो को भी हमारी importance
पता चल जायेगी|
उन्हें समझ आ जाएगा की पेड़ हैं तो जीवन है|
मन्नत- दर्शकों!
हम सभी इनके बिना कैसे जीवित रह पाएंगे। (बोलते-बोलते मन्नत का दम घुटने लगता है।)
रोली- Viewers! यदि अब भी हम सभी नहीं
जागे तो इसके परिणाम और भी खराब हो सकते हैं। जैसा कि आप सब यहां पर देख रहे हैं और हमारे लाखों Viewers “अभी तक” चैनल के माध्यम से देख
पा रहे हैं, पेड़ों ने तो तय कर लिया है! हमें आपको भी तय करना है| क्या आप पेड़ बचाओ इस मुहिम का हिस्सा बनेंगे? क्या आप पेड़ लगाएंगे और उनमें पानी डालेंगे?
दर्शक- (एक स्वर में चिल्लाते हुए) हम
सभी पेड़ों की रक्षा करेंगे। हम अपने स्वार्थ के लिए पेड़ों को नहीं काटेंगे। और अधिक से अधिक पेड़ लगाएंगे।
धरती माँ ने है पुकारा, पेड़ो से चलता जीवन सारा।
रोली- आपके
अपने चैनल अभी तक के तमाम व्यूवर्स की भी यही राय है| हमारे पास लगातार लोगों के messages आ रहे हैं कि पेड़ है तो जीवन है|
रोली- आम के पेड़ से – देखिये मनुष्यों ने अपनी गलती मान ली है। अब आप भी
गुस्सा थूक दीजिए।)
आम- बिल्कुल| आखिर हम सभी पेड़ भी तो मनुष्यों का भला ही चाहते हैं। देखिए हमारा
और आपका तो जन्म-जन्मांतर का साथ रहा है।
दर्शक- तो क्या आप हमें माफ करेंगे? हमें सुधरने का एक मौका देंगे?
रोली- दर्शकों!
निराश होने की आवश्यकता नहीं है। पेड़ों के खिले-खिले चेहरे और झूमती डालियां इस
बात की प्रतीक हैं कि उन्होंने हम सभी मनुष्यों को माफ कर दिया है।
मन्नत- आज का ये प्रोग्राम यहीं पर समाप्त होता है। मैं और मन्नत, कैमरामैन आशुतोष के साथ आपसे विदा लेते हैं।लेकिन आप कहीं मत जाइएगा| बने रहिए हमारे साथ और
देखते रहिए अभी तक|
(पर्दा गिरता है।)
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