माँ काली करती हैं असुरों का संहार,
पर असुर कौन है, सोचो ज़रा बार-बार।
क्या वह नहीं, जो जीवों का खून बहाते,
निर्दोष प्राणियों की बलि चढ़ाते पशु-पक्षियों की चीख माँ दुर्गा तक सीधी पहुँचती।
कभी बादल फटते, कभी धरती हिल जाती,
यह प्रकृति का क्रोध है, जब करुण पुकार आती।
लेकिन हम ही बहरे हैं उस मौन क्रन्दन पर,
माँ भी मुँह फेर लेतीं, जब अलमस्त हैं हम संसार पर।
इस नवरात्रि जगाओ करुणा की मशाल,
त्यागो रक्त-मांस, चुनो जीवन का ख्याल।
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